उधम सिंह ने लंदन जाकर लिया था ‘जलियांवाला बाग’ का बदला!

13 अप्रैल 1919 भारत के इतिहास का वह काला दिन माना जाता है, क्योंकि बैसाखी पर्व के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने निहत्थे मासूमों पर 1,650 राउंड गोलियां चलाई थी। जानिए क्या हुआ था बैसाखी के दिन और किसने लिया जलियांवाला बाग का अंग्रेज़ो से बदला।

जलियांवाला बाग में अंधाधुंध गोलीबारी

jal4आजादी के आंदोलन के दौरान पंजाब के दो बड़े नेताओं, सत्यापाल और डॉ. किचलू को ब्रिटिश सेना ने गिरफ्तार कर लिया, जिससे अमृतसर में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, 10-15 हजार लोग जमा हो गए थे। तभी इस बाग के एकमात्र रास्ते से डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए।

कुएं में कुद गए लोग

Massacerघबराहट में कई लोग बाग में बने कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएं से ही मिले।

हज़ारों में भारतीयों की मौत

CYbujOWWMAAqmIcराजनैतिक कारणों की वजह से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी।

दुनियाभर में इस घटना कि निंदा

grand-trunk-roadइस हत्याकाण्ड की दुनियाभर में निंदा हुई जिसके दबाव में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉंटेग्यु ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चलाने का निर्णय पहले से ही ले चुका था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थीं।  ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर और माइकल ओडवायर भारत छोड़ कर चले गए।

उधम सिंह ने खाई बदले की कसम

Sardar-Udham-Singhकम ही लोग ये जानते हैं कि जलियांवाला बाग में  उधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे। इस घटना के बाद उधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओडवायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली।

बदला लेने पहुंचे लंदन

326398उधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा उचित समय का इंतजार करने लगे। भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडवायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया।

किताब के पन्नों में छिपाई रिवाल्वर

maxresdefaultउधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने ओडवायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं।

उधम सिंह को मिली फांसी की सज़ा

jallianwala-bagh04ओडवायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अदालत में उधम सिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियां बचीं थीं, तो उन्होंने उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। इस पर उधम सिंह ने जवाब दिया हां ऐसा कर मैं भाग सकता था, लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया।

दोनों ब्रिटिश अधिकारियों की दर्दनाक मौत

1336780_Wallpaper2उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओडवायर को जहां उधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर बुरी मौत मारा गया।
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